क्या आप जानते हैं समाजशास्त्र क्या है ?


समाजशास्त्र क्या है

दोस्तों आज हम बात करने जा रहे है कि समाज शास्त्र क्या होता है, आईये जानते है इसके बारे में 

समाजशास्त्र के इतिहास पर दृष्टिपात करने से ज्ञात होता है कि यह एक नव विकसित सामाजिक विज्ञान है।सर्वप्रथम इस शब्द का प्रयोग फ्रांसीसी विद्वान ऑगस्त कॉम्ट(Auguste Comte) ने 1838 में किया। इसलिए ऑगस्ट कोम्ट को "समाजशास्त्र का पिता" कहा जाता है। उन्होंने तत्कालीन यूरोप की परिस्थितियों से प्रभावित होकर सामूहिक जीवन तथा उससे संबंधित मौलिक एवं आधारभूत नियमों को समझने हेतु समाजशास्त्र विषय की आवश्यकता को अनुभव किया।
 सर्वप्रथम इन्होंने इस विषय को सामाजिक भौतिकी कहा परंतु अन्य विद्वानों द्वारा इस शब्द को स्वीकार न किए जाने पर कोम्ट ने स्वयं सामाजिक भौतिकी के स्थान पर समाजशास्त्र शब्द का प्रयोग किया और यह विषय इसी नाम से आज भी जाना जाता है।
अतः इसका इतिहास लगभग 180 वर्ष का है । नवविकसित विज्ञान होने के कारण समाजशास्त्र के विषय-क्षेत्र के बारे में विभिन्न विद्वानों में मतभेद है। इन्हीं मतभेदों के कारण विभिन्न विद्वानों ने समाजशास्त्र को अलग-अलग प्रकार से परिभाषित किया है ।


समाजशास्त्र का अर्थ एवं परिभाषाएं:-

समाजशास्त्र को अंग्रेजी में सोशियोलॉजी (Sociology) कहा जाता है जो दो शब्दों सोशियो तथा लॉजी से मिलकर बना है। सोशियो लैटिन भाषा के सोशियस (Socius) शब्द से बना है जिसका अर्थ समाज है और लॉजी ग्रीक भाषा के logos शब्द से बना है जिसका अर्थ विज्ञान या शास्त्र है । इस प्रकार शाब्दिक अर्थ में समाजशास्त्र वह विषय विज्ञान है जिसमें समाज का अध्ययन किया जाता है। इसलिए रॉबर्ट ने समाजशास्त्र को दो भाषाओं की दोगली संतान कहां है समाजशास्त्र को समाज और विज्ञान के अर्थ द्वारा समझा जा सकता है ।
विभिन्न विद्वानों द्वारा दी गई भाषाओं से समाजशास्त्र के स्वरूप को ठीक प्रकार से समझा जा सकता है समाजशास्त्र की कोई एक सर्वमान्य परिभाषा नहीं है । विभिन्न विद्वानों ने इसे भिन्न भिन्न दृष्टिकोण से परिभाषित किया है इसकी परिभाषाओं को हम अपनी सुविधा के लिए निम्नलिखित श्रेणियों में विभाजित कर सकते हैं:-

 समाजशास्त्र समाज का अध्ययन है:-
  • ओडम अनुसार, "समाजशास्त्र वह विज्ञान है जो समाज काअध्ययन करता है"
  •  वार्ड के अनुसार। "समाजशास्त्र समाज का विज्ञान है"
समाजशास्त्र सामाजिक संबंधों का अध्ययन है:- 

  • मैकाइवर एंव पेज के अनुसार, "समाजशास्त्र सामाजिक संबंधों के विषय में है तथा इन संबंधों के जाल को हम समाज कहते हैं"
  •  रोज के अनुसार, "समाजशास्त्र मानव संबंधों का विज्ञान है"

समाजशास्त्र सामाजिक जीवन और घटनाओं का अध्ययन है:-

  • किम्बाल यंग के अनुसार, "समाजशास्त्र समूह में मनुष्य के व्यवहार का अध्ययन है"
  •  ऑगबर्न और निम्कॉफ के अनुसार, "समाजशास्त्र सामाजिक जीवन का वैज्ञानिक अध्ययन है"

समाजशास्त्र की उपयोगिता 


  • समाजशास्त्र समाज तथा सामाजिक संबंधों से संबंधित विभिन्न प्रत्ययो का सैद्वांतिक ज्ञान प्रदान करता है ।
  • समाजशास्त्र के अध्ययन एवं ज्ञान से समाज में सहिष्णुता में वृद्धि होती है ।
  • समाज कल्याण के क्षेत्र में भी समाजशास्त्र का समुचित योगदान एवं उपयोग है।
  • समाजशास्त्रीय अध्ययन के आधार पर विभिन्न सामाजिक समस्याओं के कारणों को जाना जा सकता है तथा उनके निराकरण के उपाय ढूंढे जाते हैं।
  • समाजशास्त्र जनजातीय समाज का सूक्षम अध्ययन करता है तथा प्राप्त ज्ञान एवं जानकारी के आधार पर जनजातीय कल्याण के कार्य संभव हो पाते हैं।
  • समाजशास्त्रीय अध्ययन सामाजिक नियोजन में अत्यधिक सहायक तथा उपयोगी सिद्ध होते हैं।

समाजशास्त्र की अध्ययन वस्तु (विषय वस्तु) की अनिश्चितता


समाजशास्त्र अन्य विद्वानों की तुलना में एक नया विज्ञान है इसलिए समाजशास्त्र की कोई अध्ययन-वस्तु पूर्णता: निश्चित नहीं की जा सकती। इस कथन के पक्ष में निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत किए जा सकते हैं:-

समाजशास्त्र के क्षेत्र की विस्तृतता:-

समाजशास्त्र एक सामान्य विज्ञान है जिसमें मानव से संबंधित समाज के अनेक विषयों का अध्ययन किया जाता है । मानव समाज में अनेक विषयों का समावेश हो जाने के कारण समाजशास्त्र का क्षेत्र अधिक विस्तृत हो जाता है जिसको किसी भी निश्चित सीमा से प्रतिबंधित या सीमित नहीं किया जा सकता।

समाजशास्त्र के स्वरूप की  अस्थिरता:-

समाजशास्त्र केवल एक ही विषय का अध्ययन नहीं करता । विभिन्न विषयों का अध्ययन करने के कारण समाजशास्त्र का स्वरूप स्थिर नहीं है, कहीं पर यह मनोविज्ञान नजर आता है तो कहीं पर यह राजनीति शास्त्र की बातें करता है। अतएव समाजशास्त्र को एक स्थिर शास्त्र कहा ही नहीं जा सकता । ऐसी दशा में उसका आदि व अंत ढूंढ़ना बहुत ही कठिन काम है।

समाजशास्त्र की परिभाषा की अनिश्चितता:-

समाजशास्त्र मानव के सामाजिक संबंध के स्वरूपों का अध्ययन करता है । सामाजिक संबंध अत्यंत ही जटिल एवं अमूर्त होते हैं । इसलिए समाजशास्त्र के विषय क्षेत्र को नहीं समझा जा सकता ।
केरेंसी ने तो यहां तक कह दिया है कि "जब तक समाज ही स्वं अपने विषय की परिभाषा ना करें तब तक समाजशास्त्र की यही परिभाषा होगी कि समाजशास्त्री जिस विषय पर लेखनी चलाते हैं वही समाजशास्त्र का विषय है।"